हे चतुराई के सानी,
तुम्हरे समक्ष नहीं करें मनमानी,
चाहे भारतीय हिन्दी, ईसाई या मुसलमाननी,
तुम्हरे हर्ष उल्लास लिए, सब सुनती धर्म की सुवाणी।
तुम्हरे कृपा पात्र सभी धरती के प्राणी,
प्रत्येक अदभुत जलचर व जो सादे गए पहचानि।
निशाचरों का बल तुम रोको, तुम तो जानी जानि,
चहुं जगत तुमको पूजता, प्रस्तुतता सेवा अरु सम्मानि।
पीड़ा से मुक्ति दिलाइए, ऐ प्यारे हरि नारायण,
आशीष दीजिए ताकि रजत बने कर्तव्य-परायण।
हम सब रहें मगन, करें तुम्हार भजन गायन,
हम हों सर्व दिशाओं में सुखी, पाएं बेशकीमती वस्तुएं व रसायन।
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